Indian History Notes

ऋग्वैदिक देवी-देवताः एक दृष्टि में  

ऋग्वैदिक देवी-देवताः एक दृष्टि में
(Rigvedic Gods and Goddesses at a Glance) 

वरूण  सकल ब्रह्माण्ड का अधिपति, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, नियामक, प्रजारक्षक 
इन्द्र (पुरन्दर) आँधी, तूफान, बिजली और वर्षा का देवता 
विष्णु संसार का संरक्षक  
उषा सूर्योदय-पूर्व की अवस्था की द्योतक 
अदिति आर्यों की सार्वभौम  भावना की देवी 
सोमवनस्पतियों, औषधियों के अधिपति 

 

ऋग्वेद के मण्डल (प्रमुख रचनाएँ) एवं उसके रचयिता 

[Mandalas (Main Compositions) of Rigveda and their Authors] 

  ऋग्वेद के मण्डल        रचयिता 
प्रथम मण्डल मधुच्छन्दा, दीर्घतमा आदि 
द्वीतीय मण्डलगृत्समद 
तृतीय मण्डल विश्वामित्र 
चतुर्थ मण्डल वामदेव
पंचम् मण्डल अत्रि
षष्ठम् मण्डल  भारद्वाज
सप्तम् मण्डल वशिष्ठ
अष्टम् मण्डल कण्व एवं आंगिरस
नवम् मण्डल आंगिरस, काश्यप आदि
दशम् मण्डलत्रित, इन्द्राणी, शची, श्रद्धा आदि 

ऋग्वैदिक नदियाँ (Rigvedic Rivers) 

    प्राचीन नाम     वर्तमान नाम
विपाशा व्यास 
वितस्ता झेलम 
सिन्धु इण्डस (सिन्ध) 
अस्किनी चिनाव  
शुतुद्री सतलज 
सरस्वती सुरसती 
परुष्णी रावी 
द्वशद्वतीघग्गर 
सदानीरागंडक 
कुम्भाकाबुल 
सुवास्तुस्वात 
क्रुमुकुर्रम 
गोमलगोमती

प्रमुख दर्शन एवं उनके प्रवर्तक (Major Philosophies and their Origins) 

      दर्शन     प्रवर्तक
चार्वाक चार्वाक 
योग पतञ्जलि 
सांख्य कपिल 
न्याय गौतम  
पूर्व मीमांसाजैमिनी 
उत्तर मीमांसाबादरायण 
वैशेषिक कणाद या उलूक

  • वैशेषिक एक भारतीय दर्शन है जिसने अणु सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। 

विभिन्न दिशाओं में राजा के विभिन्न नाम 

(Different Names of the King in Different  Directions)

पूर्व सम्राट 
पश्चिम स्वराष्ट्र 
उत्तर विराट 
दक्षिण भोज 
मध्यराजा 

3. उत्तर वैदिक काल (Post Vedic Period)— 

भारतीय इतिहास के उस कालखण्ड को जिसमें सामवेद, यजुर्वेद, अर्थवेद, ब्राह्मण ग्रन्थ उपनिषद् अरण्यक आदि की रचना हुई, उत्तर वैदिक काल कहा जाता है। 

  • उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक व्यवस्था (Political System of Past Vedic Period)— 

  • राजा, उत्तर वैदिक काल में कबीले का स्वामी नहीं था, बल्कि वह राज्य प्रदेश पर शासन करने लगा था। 

  • उपनिषदकाल में अनेक राजा हुए। विदेह के जनक, कैकेय के अश्वपति, काशी के अजातशत्रु, पंचाल के प्रवाहण जाबाली। 

  • राष्ट्र शब्द का पहली बार प्रयोग उत्तर वैदिक काल में ही हुआ। 

  • उत्तर वैदिक काल में भी सभा और समिति नामक संस्था राजा की निरंकुशता को सीमित करती थी। 

  • राजा के दैवीक उत्पत्ति का सिद्धान्त इसी समय प्रवर्तन में आया और राजा विभिन्न उपाधियाँ धारण करने लगा था। 

  • उत्तर वैदिक काल में कर स्थायी हो गये थे और राजा के उच्च पदाधिकारियों को रत्नी कहा जाता था। 

  • राजा अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए विभिन्न प्रकार के यज्ञों का आयोजन करता था। 

  • उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में और गिरावट आयी और उन्हें जुआ (द्यूत) सुरा (शराब) की श्रेणी में रखा जाने लगा। 

  • उत्तर वैदिककालीन सामाजिक व्यवस्था (social system of Post Vedic Period)—

  • उत्तर वैदिक काल में चारों वर्णों में स्पष्ट विभाजन हो गया और समाज जातियों में विभाजित हो गया और वर्णों में कठोरता आ गई। 

  • उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मण,  क्षत्रिय और वैश्य को द्विज कहा जाता था। शूद्र वर्ग की स्थिति में गिरावट आयी और उसे तीनों वर्गों की सेवा के लिए माना गया। 

  • उत्तर वैदिक काल में जातीय विभिन्न के गोत्र विभाजन भी हो गये और प्रायः गोत्र से बाहर विवाह नहीं किये जाते थे। 

  • जावलोपनिषद् में पहली बार चार आश्रमों का उल्लेख हुआ जिन्हें 25-25 वर्ष की अवधि में बाँटा गया, मनुष्य का जीवन प्रायः 100  वर्ष माना गया। 

  • उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आयी और  उन्हें उपनयन संस्कार से वंचित कर दिया गया। यद्यपि शतपथ ब्राह्मण में, गार्गी, गन्धर्व, गृहीता, मैत्रेया जैसी विदुषी स्त्रियों का उल्लेख प्राप्त होता है। 

  • उत्तर वैदिक काल में त्रंत्रीय सहिता में पहली बार दास प्रथा का उल्लेख हुआ है। 

  • उत्तर वैदिक काल में श्रेष्ठी का उल्लेख हुआ है जिसका मुखिया श्रेष्ठिन होता था। 

    • उत्तर वैदिककालीन धार्मिक जीवन (Religious Life of Post Vedic Period)— 

  • उत्तर वैदिक काल में इन्द्र का स्थान प्रजापति ने ले लिया और प्राजपति सर्वोच्च देवता बन गया। 

  • उत्तर वैदिक काल में इन्द्र के अलावा अन्य देवताओं की स्थिति में भी परिवर्तन आया। 

  • ऋग्वैदिककालीन शिव, उत्तर वैदिक काल में रूद्र के रूप में उच्च देवता के रूप मे्ं स्थापित हो गये। 

  • पूषन जो ऋग्वेद में पशुओं के देवता थे इस समय शूद्रों के देवता के रूप में परिवर्तित हो गये। 

  • मूर्ति पूजा का आरम्भ उत्तर वैदिक काल से ही माना जाता है। 

  •  उत्तर वैदिक काल से ही बहुदेववाद, वासुदेव सम्प्रदाय, षडदर्शन का पहली बार उल्लेख हुआ है। 

  • उपनिषदों में बहुदेववाद और कर्मकाण्डों की आलोचना की गई है। 

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